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दिनांक 09.05.2022 तक पंचायत सहायक / एकाउन्टेन्ट कम डाटा इन्ट्री आपरेटर के रिक्त पदों का विवरण,Details of vacant posts of Panchayat Assistant / Accountant cum Data Entry Operator till 09.05.2022.

दिनांक 09.05.2022 तक पंचायत सहायक / एकाउन्टेन्ट कम डाटा इन्ट्री आपरेटर के रिक्त पदों का विवरण,Details of vacant posts of Panchayat Assistant / Accountant cum Data Entry Operator till 09.05.2022.






पंचायती राज व्यवस्था (उ० प्र०) में ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत, और जिला पंचायत आते हैं। पंचायती राज व्यवस्था आम ग्रामीण जनता की लोकतंत्र में प्रभावी भागीदारी का सशक्त माध्यम है। 73वाँ संविधान संशोधन द्वारा एक सुनियोजित पंचायती राज व्यवस्था स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त किया गया है। 73वां संविधान संशोधन अधिनियम के लागू होते ही प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश के पंचायत राज अधिनियमों अर्थात् उ.प्र. पंचायत राज अधिनियम-1947 एवम् उ.प्र. क्षेत्र पंचायत तथा जिला पंचायत अधिनियम-1961 में अपेक्षित संशोधन कर संवैधानिक व्यवस्था को मूर्तरूप दिया गया। 


राज्य सरकार द्वारा वर्ष 1995 में एक विकेन्द्रीकरण एवं प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन किया गया था जिसके द्वारा की गई संस्तुतियों के अध्ययनोंपरान्त तत्कालीन कृषि उत्पादन आयुक्त की अध्यक्षता में गठित उच्च स्तरीय समिति (एच.पी.सी.) द्वारा वर्ष 1997 में 32 विभागों के कार्य चिन्हित कर पंचायती राज संस्थाओं को हस्तान्तरित करने की सिफारिश की गयी थी। प्रदेश सरकार संवैधानिक भावना के अनुसार पंचायती राज संस्थाओं को अधिकार एवं दायित्व सम्पन्न करने के लिए कटिबद्ध है।



पंचायती राज व्यवस्था का संक्षिप्त इतिहास (ग्राम पंचायतें अतीत से वर्तमान तक)

भारत के प्राचीनतम उपलब्ध ग्रन्थ ऋग्वेद में ‘सभा’ एवम् ‘समिति’ के रूप में लोकतांत्रिक स्वायत्तशासी संस्थाओं का उल्लेख मिलता है। इतिहास के विभिन्न अवसरों पर केन्द्र में राजनैतिक उथल पुथलों के बावजूद सत्ता परिवर्तनो से निष्प्रभावित रहकर भी ग्रामीण स्तर पर यह स्वायत्तशासी इकाइयां पंचायतें आदिकाल से निरन्तर किसी न किसी रूप में कार्यरत रही हैं।


उत्तर प्रदेश मे पंचायतों के विकास का प्रथम चरण (1947 से 1952-53)

संयुक्त प्रान्त पंचायत राज अधिनियम 1947 दिनांक 7 दिसम्बर, 1947 ई0 को गवर्नर जनरल द्वारा हस्ताक्षरित हुआ और प्रदेश में 15 अगस्त, 1949 से पंचायतों की स्थापना हु ई। इसके बाद जब देश का संविधान बना तो उसमें पंचायतों की स्थापना की व्यापक व्यवस्था की गई। संविधान में राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के अनुच्छेद- 40 में यह निर्देश दिये गये हैं कि राज्य पंचायतों की स्थापना के लिए आवश्यक कदम उठायें और ग्रामीण स्तर पर सभी प्रकार के कार्य एवं अधिकार उन्हें देने का प्रयत्न करें। 15 अगस्त, 1949 से उत्तर प्रदेश की तत्कालीन पाच करोड़ चालीस लाख ग्रामीण जनता को प्रतिनिधित्व करने वाली 35,000 पंचायतों ने कार्य करना प्रारम्भ किया। 


साथ ही लगभग 8 हजार पंचायत अदालतें भी स्थापित की गई । सन् 1951-52 में गाव सभाओं की संख्या बढ़कर 35,943 तथा पंचायत अदालतों की संख्या बढ़कर 8492 हो गई। 1952 से पंचायतों ने ग्रामीण जीवन में सुनियोजित स्तर पर राष्ट्र निर्माण का कार्य करना आरम्भ किया। इस वर्ष पहली पंचवर्षीय योजना प्रारम्भ हुई। योजना की सफलता के लिए शासन द्वारा पंचायत अदालत स्तर पर विकास समितियों के सदस्य मनोनीत किए गये। ग्राम पंचायत स्तर पर पंचायत मंत्री, विकास समितियों का भी मंत्री नियुक्त किया गया। जिला नियोजन समिति में भी प्रत्येक तहसील से एक प्रधान मनोनीत किया गया। 1952-53 में जमींदारी विनाश के पश्चात गाव समाज की स्थापना हुई और गाव सभाओं के अधिकार बढ़ाये गये।

पंचायतों के विकास का दूसरा चरण (1953-54 से 1959-60)

1953-54 में पंचायतों की सक्रियता एवं विभिन्न विकास सम्बन्धी कार्यक्रमों में उनका सहयोग बढ़ाने के लिए विधान सभा के सदस्यो की एक समिति नियुक्त की गयी। इस समिति के सुझावों को दृष्टि में रखकर पंचायत राज संशोधन विधेयक तैयार किया गया जो पंचायतों के अगले दूसरे आम चुनाव में क्रियान्वित हुआ। 1955 में पंचायतों का दूसरा आम चुनाव सम्पन्न हुआ। जिसमें गांव सभा व गांव समाज के क्षेत्राधिकार को एक कर दिया गया। 250 या इससे अधिक जनसंख्या वाले हर गांव में गांव सभा संगठित करते हुए दूसरे आम चुनाव में गांव पंचायतों की संख्या बढ़कर 72425 हो गयी। 


1957-58 में पंचायतों के क्षेत्रीय परिवर्तन के कारण उनकी संख्या 72425 के स्थान पर 72409 ही रह गयी जबकि न्याय पंचायतों की संख्या 8585 1थी। 1955 के चुनाव के बाद पंचायत अदालतों का न्याय पंचायत नामकरण किया गया है। वित्तीय वर्ष 1959-60 पंचायतों का कृषि विषयक कार्यो की दृष्टि से उल्लेखनीय वर्ष रहा है। इस वर्ष पंचायतों ने खाद्यान्न की उपज बढ़ाने के लिए चलाये गये रबी और खरीफ आन्दोलनों में विशेष उत्साह का प्रदर्शन किया। इस उद्देश्य से अधिकांश गाव सभाओं में कृषि समिति की स्थापना की गयी।


पंचायतों के विकास का तीसरा चरण (1960-61 से 1971-72))

वर्ष 1960-61 में गावों को आत्मनिर्भर तथा सम्पन्न बनाने के उद्देश्य ग्राम पंचायत क्षेत्रों में कृषि उत्पादन तथा कल्याण उपसमितियो का गठन गाव सभा स्तर पर किया गया। इसी वर्ष पंचायत राज अधिनियम में संशोधन द्वारा गांव पंचायतों तथा न्याय पंचायतों की चुनाव पद्धति में आंशिक परिवर्तन किया गया जिसके अनुसार गांव सभा के प्रधान का चुनाव गुप्त मतदान प्रणाली द्वारा किए जाने का निश्चय हुआ। 10 फरवरी, 1961 ई0 से 7 फरवरी, 1962 ई0 के मध्य पंचायतो का तृतीय सामान्य निर्वाचन सम्पन्न हुआ। 


श्री बलवन्त राय मेहता समिति की सिफारिशों के आधार पर भारत सरकार के निर्देशानुसार सत्ता के विकेन्द्रीकरण के सिद्धान्तों के अनुरूप उत्तर प्रदेश क्षेत्र समिति एवं जिला परिषद अधिनियम 1961 ई0 क्रियान्वित किया गया। इस अधिनियम के अनुसार प्र देश में गांव सभा, क्षेत्र समिति तथा जिला परिषद की इकाईयों को एक सूत्र में बाधा गया और प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था प्रारम्भ हुई। पंचायतों के तीसरे आम चुनावों के पश्चात् प्रदेश में गांव पंचायतों की संख्या 72233 तथा न्याय पंचायतों की संख्या 8594 थी।

पंचायतों के विकास का चैथा चरण (1972-73 से 1981-82)

वर्ष 1972-73 में पंचायतों के चौथे आम चुनाव सम्पन्न हुऐ। उस समय प्रदेश में गांव पंचायतो की संख्या 72834 और न्याय पंचायतों की संख्या 8792 थी। 30 अक्टूबर 1971 में विभाग के ग्राम स्तरीय कार्य कर्ता पंचायत सेवकों के शासकीय कर्मचारी हो जाने के उपरान्त गावं पंचायतों की गतिविधियों में अपेक्षित सुधार हुआ और तदुपरान्त बड़ी द्रुत गति से गांव पंचायतों अर्थात् ग्रामोपयोगी सत्ता की जड़ें गहरी जमने लगी। 


वर्ष 1981-82 के अन्त तक कतिपय संशोधन के फलस्वरूप प्रदेश में 72809 गांव पंचायतें तथा 8791 न्याय पंचायतें कार्यरत रहीं। गांव पंचायतों का पाचवा सामान्य निर्वाचन वर्ष 1972-73 के उपरान्त मार्च 1982 से जुलाई, 1982 के मध्य सम्पन्न हुआ। इस सामान्य निर्वाचन में गांव सभाओं की संख्या 74,060 थी। इन चुनावों में उनके मतदाताओं की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गयी। 







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